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तारीख: 8 मार्च 2025

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान देना जरूरी है। इसलिए, महिलाएँ जनसंख्या का आधा हिस्सा हैं और उनका सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक योगदान बेहद अहम है।

डॉ. भीमराव अंबेडकर का दृष्टिकोण

डॉ. अंबेडकर कहते थे, “महिलाओं को समान अधिकार और अवसर मिलने चाहिए।” इस प्रकार, यह विचार आज भी प्रासंगिक है और हमें प्रेरित करता है।

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी अब भी सीमित है। वास्तव में, भारतीय संसद में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 14% है। विश्लेषक मीरा जोशी कहती हैं, “महिलाएँ राजनीति में आएँगी, तो समावेशी नीतियाँ बनेंगी।”

महिला सुरक्षा: बड़ी चुनौती

लिंग आधारित हिंसा एक गंभीर मुद्दा है। इसलिए, कार्यकर्ता कविता सिंह कहती हैं, “जो समाज महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता, वह प्रगतिशील नहीं हो सकता।” इसलिए, सुरक्षित स्थान बनाना अनिवार्य है।

आर्थिक सशक्तिकरण की जरूरत

महिलाओं की शिक्षा और उद्यमिता में निवेश से अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। इसके अलावा, अर्थशास्त्री रमेश गुप्ता बताते हैं, “जब महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र होती हैं, तो वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाती हैं।”

समावेशी विकास की दिशा में कदम

महिला सशक्तिकरण केवल नैतिक जरूरत नहीं, बल्कि विकास की कुंजी है। इस संदर्भ में, डॉ. अंबेडकर के शब्दों में, “सशक्त महिलाएँ ही प्रगतिशील समाज की नींव रखती हैं।”

महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्रमुख पहलें

  1.  शिक्षा और प्रशिक्षण: ग्रामीण क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण।
  2.  राजनीतिक भागीदारी: महिलाओं के लिए अधिक प्रतिनिधित्व वाली नीतियाँ।
  3.  आर्थिक सहायता: व्यवसाय शुरू करने के लिए वित्तीय सहयोग और सूक्ष्म ऋण।
  4.  जागरूकता अभियान: लिंग समानता और अधिकारों पर व्यापक जागरूकता। सुरक्षित स्थान: महिलाओं के लिए सुरक्षित और स्वतंत्र माहौल।

इन कदमों से भारत एक समावेशी और सशक्त समाज की ओर बढ़ सकता है, जहाँ महिलाएँ बराबरी के साथ आगे बढ़ सकें।

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